आत्मज्ञानी कौन?
वह जो:
- अन्तः स्फूर्त होकर सहज भाव से सब कार्य करता हैं |
- स्वयं में अद्भुत प्रवाह, दिव्या आनंद और पूर्णता अनुभव करता हैं |
- देह तथा मन से परे आत्म-चैतन्य में स्थित आत्म-मग्न रहता हैं |
- ना कर्म का कर्ता और न फल का भोक्ता होता हैं |
- टहरने, चलने अथवा शयन करने से उनकी आनंद अवस्था में कोई अंतर नहीं आता |
- जगत का मात्र साक्षी होता हैं |
- इच्छा और कामना नष्ट होने के कारन संसार उसके लिए विलुप्त हो जाता हैं |
- संकल्प और विकलप न करे |
- भोगेच्छा और मोक्षेच्छा से परे हो जाता हैं |
- कुछ भी त्याज्य या ग्राह्य नहीं होता हैं |
- प्रशंसा और निन्दा से परे हो जाता हैं |