Friday, September 17, 2021

अनुस्वार / अनुनासिक

अनुस्वार - वणों के उच्चारण में यदि हवा केवल नाक से निकले | अनुस्वार के रूप बिंदु का प्रयोग बकया जाता है। • वर्णो के स्थान पर इसका प्रयोग बकया जाता है।जैसे- गंगा डंडा संतुष्ट • यदि शब्द में पंचाक्षर दुबारा आ जाता हैं तो पंचाक्षर को उसी रूप में लिखना चाहिए जैसे सम्मेलन, सम्मान • पंचम वर्ण के बाद य र ल व तथा ह आनेपर इन शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग नही िंहोता। जैसे-मान्यवर, तुम्हारा आबद । • श ष स ह के पूर्व पंचाक्षर आनेपर अनुस्वार का ही प्रयोग होता है, पंचाक्षर का नही | जैसे दंश संहार • सम् उपसर्ग के उपरांत अन्तस्थ या ऊष्म वर्ण आनेपर म् अनुस्वार में ही परिवर्तित हो जाता है। जैसे सम्+वाद =सिंवाद, सम्+ यम = संयम अनुनासिक - जिन वणों का उच्चारण नाक और मुँह दोनों मिलकर किया जाता हैं। चाँद पाँच काँटा अनुनासिक स्वरो के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें – • जिन स्वरों अथवा उनकी मात्रओ का कोई भी हिस्सा शिरोरेखा के ऊपर निकलता है, वहाँ अनुनासिक के लिए केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता हैं गोंद गेंद • अनुनासिकता का प्रयोग आरम्भ मध्य अंत कही भी हो सकता हैं | हँसी लहँगा कुआँ हँस हंस

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